उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ के मेरठ विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार का एक और मामला हुआ उजागर

Admin
0

फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर फर्जी बैनामा, संपत्ति लिपिक की भूमिका संदिग्ध, जांच में लटकी तलवार

 मेरठ विकास प्राधिकरण की गंगानगर आवासीय योजना में लाखों रुपए की कीमत के प्लॉट का है मामला

लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के मामले में संबंधित अधिकारियों की भी कराई जाए जांच 

 पूर्व में पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यापन में रिपोर्ट आई थी सही ,बाद में हुआ सत्यापन तो खुल गया पूरा खेल

मेरठ विकास प्राधिकरण की फाइलों में भ्रष्टाचार से जुड़े बहुत मामले अभी भी है दफन 

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को मेरठ विकास प्राधिकरण की उच्च स्तरीय जांच एजेंसी से कराए जाने की आवश्यकता है अगर निष्पक्ष जांच हुई तो खुल सकता  हैं भ्रष्टाचार का पुलिंदा।

सुरेंद्र मलनिया

मेरठ। फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर फर्जी बैनामा करने के बाद मेरठ विकास प्राधिकरण एक बार फिर भ्रष्टाचार को लेकर सुर्ख़ियों में है सूत्रों के मुताबिक इस मामले की जांच में संपत्ति लिपिक की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। मिली जानकारी के मुताबिक विगत 20 मई 2022 को मेरठ के घोसी पुर के गांव काजीपुर निवासी चरण सिंह के पुत्र सत्यवीर सिंह ने मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को एक शिकायती पत्र देकर मेरठ के तहसील मवाना के गांव बहलोत पुर निवासी स्वर्गीय श्री शिवचरण के पुत्र अमरजीत सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहां है कि गंगानगर आवासीय योजना के सेक्टर एन ए पॉकेट मैं  यू 190 के 120 वर्ग मीटर के प्लॉट का फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर फर्जी बैनामा प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से करा दिया गया है 


इस मामले में पीड़ित पक्ष ने न्याय की भीख प्राधिकरण के उपाध्यक्ष से मांगी है  । वही प्राधिकरण उपाध्यक्ष ने इस पूरे प्रकरण की जांच प्रभारी संपत्ति अधिकारी  को सौंप दी है। सूत्रों की माने तो इस पूरे प्रकरण में अभी तक संपत्ति लिपिक की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।

 प्राप्त जानकारी के मुताबिक 120 वर्ग मीटर के प्लॉट नंबर यू 190 मेरठ विकास प्राधिकरण की आवासीय योजना गंगानगर में लाटरी पद्धति से विगत 6 जुलाई 2006 को गांव काजीपुर निवासी सत्यवीर सिंह को आवंटन हुआ था जिसकी किस्त भी आवंटी समय-समय पर प्राधिकरण में जमा कर रहा था। लेकिन इसी बीच मेरठ की तहसील मवाना के गांव बहलोत पुर निवासी अमरजीत सिंह ने विगत 10 दिसंबर 2007 को उपनिबंधक प्रथम मेरठ के कार्यालय से फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी दर्शाते हुए मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से विगत 11 अप्रैल 2022 को लाखों रुपए की कीमत के इस प्लॉट का बैनामा भी अपने नाम करा लिया।  

इस बात का खुलासा तब हुआ जब इस प्लॉट का मूल आवंटी विगत 20 अप्रैल 2022 को अपने प्लॉट पर पहुंचा तो आसपास के लोगों ने उन्हें बताया कि इस प्लॉट का बैनामा तो अमरजीत सिंह को हो चुका है ।  इसके बाद मूल आवंटी ने 20 मई 2022 को एक शिकायती पत्र मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को सौंपा जिसमें आवंटन हुए प्लॉट का बैनामा अपने पक्ष में कराने के लिए कहा इस पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए एमडीए उपाध्यक्ष ने गंगानगर प्रभारी संपत्ति अधिकारी अभिषेक जैन को जांच सौंप दी। सूत्र बताते हैं की जांच आख्या प्रभारी संपत्ति अधिकारी ने प्राधिकरण उपाध्यक्ष को भेज  दी है जिसमें संपत्ति लिपिक की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। 

वही जिस समय पावर ऑफ अटॉर्नी से फर्जी बैनामा विगत 11 अप्रैल 2022 को हुआ उस समय गंगानगर आवासीय योजना के तत्कालीन प्रभारी संपत्ति अधिकारी , अधिशासी अभियंता श्री धीरज सिंह थे। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक तत्कालीन प्रभारी संपत्ति अधिकारी ने विगत 8 मार्च 2022 को पावर ऑफ अटॉर्नी की जांच उपनिबंधक मेरठ के कार्यालय से कराई थी इस जांच में पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत बताई गई थी वही फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी की आख्या अमरजीत सिंह द्वारा संपत्ति लिपिक को  हाथ दस्ती दी गई थी जिस वजह से शक की सुई और बढ़ जाती है ।  

वहीं अब प्रभारी संपत्ति अधिकारी ने उपनिबंधक मेरठ कार्यालय से विगत 10 दिसंबर 2007 को हुई फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी का सत्यापन कराया तो इस जांच में पावर ऑफ अटॉर्नी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं थी इसी आधार पर इस पावर ऑफ अटॉर्नी को फर्जी मानते हुए प्राधिकरण के प्रभारी संपत्ति अधिकारी ने अपनी जांच आख्या में संपत्ति लिपिक को दोषी मानते हुए फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर फर्जी बैनामा अमरजीत सिंह के नाम होना माना है  । 

वैसे सूत्रों का मानना है कि मेरठ विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार से जुड़े ऐसे बहुत से मामले हैं जो फाइलों में दफन हैं  । यदि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार मेरठ विकास प्राधिकरण की उच्च स्तरीय जांच किसी एजेंसी से कराएं तो बहुत कुछ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले फाइलों से बाहर आ सकते हैं  । फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी से फर्जी बैनामा कराए जाने के मामले में तत्कालीन अधिकारियों को भी जांच के दायरे में लाना जरूरी है क्योंकि उनकी भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि मेरठ विकास प्राधिकरण के भ्रष्टाचार को रोका जा सके  । उधर पीड़ित सत्यवीर सिंह ने फोन पर बताया कि यदि उसे न्याय नहीं मिला तो वह न्यायालय की  शरण में जाएगा।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)
To Top