कट्टरवादी संगठनों को प्रतिबंधित किया जाना उचित कदम

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“यदि तुम किसी का कोई बुरा काम देखो तो उसे अपने आप बदलने के लिए प्रेरित करो, और यदि वह ऐसा ना कर सके तो उसे अपनी वानी से बदलने दो और यदि वह ऐसा भी न कर सके तो वह अपने हृदय और धर्म का सबसे कमजोर इंसान है”-(हदीस)

देश में शांति और सदभाव स्थापित करने के लिए उग्रवाद एवं कट्टर संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। प्रतिबंध मुख्यतः उन संगठनों पर लगाना चाहिए जो इस्लाम के नाम पर स्थापित तो हो गए हैं परंतु उसके सिद्धांतों और शिक्षाओं को नहीं मानते हों। इस्लाम अलगाववाद, दुष्कर्म और हिंसक गतिविधियों रहित, एक आदर्शवादी समाज की स्थापना की बात प्रसारित करता है। उपर दी हुई प्रसिद्ध हदीस सभी मुसलमानों को बड़े पाप जैसे हत्या करना, मारपीट करना, सामूहिक हिंसा आदि या छोटे पाप जैसे किसी को गाली देना, बुराई करना, चुगली करना आदि से अलग रहने को प्रेरित करती है। एक सच्चे मुसलमान को शैतान व्यक्ति एवं कट्टरवादी संगठन को रोकना चाहिए। ऐसे संगठन को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए जो प्यार और दया की बजाय शत्रुता को बढ़ावा देते हों तथा सीधे साधे मुसलमानों को शांतिप्रिय और समृद्ध बनाने की बजाय हिंसा व विरोध प्रदर्शन के लिए उकसाते हों। पैगम्बर मुहम्मद ने अपने साथियों को कुसंगति और अस्थिरता पैदा करने के लिए कभी इजाजत नहीं दी।

"यदि कोई उस व्यक्ति पर अत्याचार करता है जो नियमों का पालन करता है। जितना वह सहन कर सकता है उससे अधिक बोझ डालता है या फिर जबरन उससे कुछ लेता है तो कयामत के दिन मैं उसका विरोधी बनूंगा"-(अल-वैहाकी)

भारतीय मुसलमान समुदाय, धर्म की आजादी, समानता, अपनी जीविका चलाना एवम भाईचारे के साथ शांतिपूर्ण समाज का आनंद ले रहे हैं। भारत में इस्लाम मक्का शरीफ़ जितना ही पुराना है। इसके कुछ महान उदाहरण जैसे कि गुजरात के घोघा में बनी हुई बरवाड़ा मस्जिद (623 ईशा पूर्व) केरल के मेथाला में चेरामन जुम्मा मस्जिद (629 ईशा पूर्व) और किलाकराई के पलैया जुम्मा पल्ली (या पुरानी जुम्मा मस्जिद- 628-630 ईशा पूर्व) इसके साक्षी हैं। यह सभी मस्जिदें अभी तक बची नहीं रहती यदि पूर्व में समुदायों के बीच घृणा एवं सांप्रदायिक तनाव रहता। यह दर्शाता है कि मुसलमानों ने हमेशा से अपने समकक्ष गैर मुसलमानों के साथ एक शांतिपूर्वक एवम भाईचारे का संबंध रखा है। परिणाम स्वरुप ऐसे संगठन या संस्था जिसे कुछ मुट्ठीभर भटके हुए मुसलमान बनाते हैं और प्यार, शांति, भाईचारे एवं भारतीय संविधान के खिलाफ खड़े हो जाते हैं, ऐसे संगठनों को निश्चित ही प्रतिबंधित किया जाना चाहिए एवं इसका तुरंत बहिष्कार भी करना चाहिए।

'तुम में से कोई भी सच में मुझ पर तब-तक विश्वास नहीं करता, जब तक तुम अपने भाई के लिए वह नहीं चाहते ,जो तुम खुद के लिए चाहते हो' -हदीस।


विश्वसनीय एवं लागू करने लायक हदीस अपने पड़ोसी एवं अपने करीबी के प्रति दयाभाव के महत्व को दर्शाता है। हदीस के विपरीत कट्टर संगठन, जैसे कि पीएफआई के आका और सहभागी जो अपनी विचारधारा को उजागर किये बिना, भोले-भाले बेरोजगार मुसलमानों को अपने जाल में फंसाकर अपने संगठन में शामिल करते हैं एवं कट्टरपंथी हिंसक दृष्टिकोण विकसित कर बेकसूर लोगों को मारने के लिए तैयार रहते हैं, ऐसे संगठन मानवता के खिलाफ काम कर रहे हैं जिनको प्रतिबंधित किया जाना एक उचित कदम है। ऐसे कट्टर संगठनों पर एक राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध उनके द्वारा किये गये अनैतिक कार्य को समाप्त करने एवं उन्हें अपने किए हुए दोष एवम पापों पर पछताने को मजबूर करेगा। कुरान की आयत स्पष्ट रूप से समझाती है कि साधारण एवं सीधे रास्ते एक समृद्ध संस्कृति एवं परंपरा की ओर जाते है।

सरकार ने अपने हिस्से का काम पीएफआई पर प्रतिबन्ध लगाकर कर दिया है। हमें सरकार का समर्थन करना चाहिए ताकि पीएफआई जैसे देश विरोधी संगठन देश में सांप्रदायिक अशांति फैलाने और इस्लाम को बदनाम करने में नाकाम रहे।

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