सुरेंद्र मलनिया
हिंसा और आतंकवाद को किसी धर्म, राष्ट्रीयता, या समूह विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता और आतंकवाद अपने सभी स्वरूपों में इस्लाम के सिद्धांतों के विरुद्ध है। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि कोई भी मत किसी तथाकथित संगठन की विचारधारा को परिवर्तित नहीं कर सकता है, लेकिन उस संगठन के लोगों को प्रभावित करने की क्षमता अवश्य रखता है। सभी का यह कर्त्तव्य है की कोई भी अन्याय या हिंसक घटना को इस्लाम के नाम पर हमें सुरक्षित करने का प्रयास करे, ये इस्लाम और मुसलामानों, दोनों के लिए घातक होगा।
मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले देशों सहित हिंसक इस्लाम के प्रति समाज का रवैया नकारात्मक रहा है। सितम्बर 2014, में एक सर्वे में वाशिंग्टन इंस्टिटयूट फॉर ईस्ट पॉलिसी के द्वारा दावा किया गया है कि इस्लामिक स्टेट को प्रमुख इस्लामी देशों जैसे कि सउदी अरब, कुवैत, यू.ए.ई. से भी सहयोग नहीं मिल रहा है। एक अन्य अध्ययन में पता चलता है कि मुस्लिम आबादी वाले अधिकांश देशों के लोग भी इस्लामी चरमपंथ से दुखी है जिसमे कि अलकायदा, हमास, बोको हराम और हिजबुल्ला इत्यादि शामिल हैं। जब दुनिया भर में इस्लामी चरमपंथ के खिलाफत में लगे हैं तो यह प्रश्न उठता है कि भारतीय मुस्लिम इस दिशा में क्यों पिछड़ रहे हैं।
भारतीय मुसलमान सभी धार्मिक और अन्य गतिविधियों के प्रति अपने शांत व्यवहार के लिए जाना जाता है। जहाँ एक तरफ पी.एफ.आई. देश भर में जहर उगल रही है, दूसरी तरफ अधिकांश मुस्लिम शायद आस लगाए हैं कि ये सब धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। कहीं न कहीं समाज में यह भी संकेत जा रहा है कि कहीं मुस्लिम समाज उनको गुप्त समर्थन तो नहीं कर रहा है। शायद यही एक कारण है कि इस एक कृत्य ने न केवल भारतीय मुसलमान को बदनाम किया, बल्कि उसने इस्लाम को भी नुकसान पहुँचाया। इस्लाम से नफरत करने वालों ने पी. एफ.आई. के कृत्यों जैसे कि बंगलौर हिंसा, प्रो जोसफ का हाथ काटने की घटना, अन्य हत्याएं आदि को इस्लाम की शिक्षा से जोड़ दिया।
दुःखद यह है कि पी.एफ.आई. किसी भी मुसलमान पर हुई जायज़ कार्यवाही को इस्लाम से जोड़ देता है और मुसलामानों को पीड़ित दिखाने का भरपूर प्रयास करता है।
जब समाज में हर मुस्लिम कृत्य को इस्लाम की कसौटी पर परखा जाने लगा है. तो मुस्लिम विद्वानों का यह कर्त्तव्य बनता है कि वो इस्लाम और चरमपंथी संगठनों के अंतर को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें, साथ ही मुस्लिम समाज को भी चाहिए कि वो आगे बढ़कर उनको आईना दिखाएं जो मुस्लिम विद्वान इस्लाम के विरूद्ध कार्य करते हैं। यह समय पी. एफ.आई. पर प्रतिबंध को सहयोग देने का है ताकि समाज में शांति बनी रहे और यह तभी संभव है जब पी. एफ.आई. जैसे संगठनों को सामाजिक वातावरण प्रदूषित करने की इजाजत न दी जाए।