परशुराम खेड़ा मंदिर में जगत कल्याण के लिए योगेंद्र पंडित ने की तपस्या शुरू।

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पुरा महादेव स्थित परशुराम खेडा मंदिर में जगत कल्याण के लिये योगेंद्र पण्डित ने अपनी तपस्या शुरू कर दी है।


बागपत।


उन्होंने 11 धुनों के बीच बैठकर भरी दोपहरी में घोर तपस्या शुरू की। उनका मानना है कि अगर सच्ची लगन और परम् पिता का आशीर्वाद जीव आत्मा पर होता है तो निश्चित रूप से कार्य सफल हो जाता है। इनके अनुसार जीवन में ईश्वर द्वारा बताये गये सतकर्मो का प्रचार प्रसार करना ही सबसे बड़ा दान होता है। योगेंद्र पंडित के लिए एक कहावत अच्छी है। वृक्ष कभी ना फल भके, नदी ना संचय नीर, परमार्थ के काज न साधुन धरा शरीर। इनके अनुसार पेड़-पौधे अपना फल स्वयं नही खाते और नदी अपना पानी खुद नहीं पीती। उनका जीवन दूसरों को ही जीवन देने में लगा रहता है। पंडित योगेंद्र  के अनुसार उनके गुरु भगवान परशुराम के भक्त होने के कारण उन्हें यहाँ पर तप करने का सुनहरी अवसर मिला है। पहले के युग में अगर किसी ने किसी का हित किया है तो वह उसके ऋणी रहते थे। उदाहरण के लिए सुग्रीव व दानवीर कर्ण कहलाए। आज के लोग ना तो राम है और ना ही श्रवण कुमार है जो अपने पिता की आज्ञा पाकर वनवास जाये और ना ही अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ दर्शन (गंगा व काशी) के दर्शन करा कर लाये। पंडित योगेंद्र ने कहा कि समाज कल्याण के लिए अंत समय तक हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अच्छा प्रयास करना चाहिए, जिससे मानव जीवन सफल हो सके। इस मौके पर सूरज मुनि जी, देव मुनि जी, कैलाश मुनि जी, समाजसेवी चंद्रपाल सिंह सुनहेड़ा, योगेश, नीटू आदि मौजूद थे।

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