बागपत, 10 मई 2025 — शनिवार को बागपत जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर में कुछ अजीब सा नज़ारा था। कोर्ट परिसर में सुबह से ही भीड़ थी — पर ये कोई मुकदमेबाज़ी नहीं थी, न ही कोई धरना-प्रदर्शन। ये लोग आए थे अपने कर्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने, और उनके लिए उम्मीद लेकर खड़ा था — केनरा बैंक का विशेष काउंटर।
जिन कर्ज़दारों ने कभी बैंक से कर्ज़ लिया था और अब उनके खाते एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) बन चुके थे, वे सब लोक अदालत के इस मंच पर पहुंचे थे। चेहरे पर तनाव था, लेकिन अंदर एक उम्मीद भी थी — कि शायद आज कोई समाधान मिल जाए।
और समाधान मिला! केनरा बैंक, क्षेत्रीय कार्यालय बागपत की टीम ने लोक अदालत में 110 खातों का निपटान एकमुश्त समाधान योजना (OTS) के तहत कर दिया। न तो किसी कोर्ट फीस की जरूरत पड़ी, न किसी वकील की। केवल एक काउंटर, कुछ दस्तावेज़ और बैंक की पहल ने वो कर दिखाया जो सालों से लटका था।
केनरा बैंक के क्षेत्रीय प्रमुख मिन्हाजुल क़मर, अग्रणी बैंक प्रबंधक अभय कुमार सिंह, मंडल प्रबंधक प्रतीक श्रीवास्तव, और स्थानीय शाखा प्रबंधकों की मौजूदगी ने इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और संवेदनशील बनाया।
बैंक का रुख सख्त नहीं, बल्कि सहयोगात्मक था। कई लोगों की आँखों में राहत के आँसू थे, जब उन्हें यह बताया गया कि उनके खाते का भारी-भरकम ब्याज माफ किया जा सकता है और अब वे न्यूनतम राशि देकर ऋणमुक्त हो सकते हैं।
बात सिर्फ पैसों की नहीं थी। यह न्याय की नहीं, न्यायभावना की जीत थी। यह उस व्यवस्था की जीत थी, जो कर्ज़दार को अपराधी नहीं, एक संकट में फंसा आम आदमी मानती है। यह पहल एक मिसाल बनी — जहाँ अदालतें सिर्फ सज़ा नहीं, समाधान भी देती हैं। जहाँ बैंक सिर्फ ब्याज नहीं, इंसानियत का भी हिसाब रखते हैं।
तो हां, कर्ज़दार आए थे डरते हुए —
पर लौटे उम्मीद, राहत और सम्मान के साथ।
नई शुरुआत करने की शक्ति लेकर।
अगर ऐसी पहलें देशभर में नियमित हों, तो शायद ‘कर्ज़ माफ़ी’ एक चुनावी वादा नहीं, आर्थिक सुधार की स्थायी नीति बन जाए।