केरल के पतन्मथिट्टा जिले का पद्म जंगल, कोल्लम जिले के सस्थमकोटा, राजस्थान के सवाई माधोपुर का घना जंगल एवं पुणे के ब्लू बेल स्कूल में एक बात सामान्य है कि इन सभी जगहों पर चरमपंथी संगठन पी.एफ.आई का प्रशिक्षण स्थल है जैसा कि एक वरिष्ठ पी. एफ. आई नेता द्वारा बताया गया है। पी.एफ.आई अपने संवर्ग को लड़ाई में निपुण बनाने के साथ साथ हथियार प्रशिक्षण में भी उतना ही ध्यान देता है जिससे कि जब भी दुश्मन हमला करे तो वो इसके लिए तैयार रहें। पी.एफ.आई की शब्दावली में शत्रु की परिभाषा जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि पी. एफ.आई अपने संवर्गों को कैसा प्रशिक्षण देता है।
पी. एफ.आई अपने काडरों के चयन और प्रशिक्षण के लिए व्यापक विधि अपनाता है। सर्वप्रथम रंगरूटों को सांप्रदायिक दंगों के वीडियो क्लिप दिखाए जाते है और उसके उपरांत शारीरिक शिक्षक उनसे मुखातिब होते हैं। इसी अभ्यास का पालन अलग-अलग समूहों के साथ किया जाता है। अंततः दस सदस्यों को उस समूह में से मुसलमानों को आर.एस.एस (दुश्मन) से बचाने के प्रयोग में किया जाता है। चयनित उम्मीदवारों को बाद में गहन सिखलाई दी जाती है जिसमें मज़हबी उसूलों के पालन जैसे कि दिन में पाँच वक़्त नमाज़ करना इत्यादि माामिल है। अंतिम रूप से चयनित व्यक्तियों पर यह भी नजर रखी जाती है कि वो सुबह की इबादत समय से कर रहे हैं या नहीं।
इन 10 के समूह को बाद में उनके गृह जिलों के आधार पर दो भाग में बांटा जाता है। इसके बाद इन्हें शारीरिक प्रशिक्षण और जिहाद् पर तक़रीरें दी जाती हैं| शारीरिक प्रशिक्षण 6 महीने तक सप्ताह में दो बार दिया जाता है और यदि कोई भी मानसिक और शारीरिक अक्षमता दिखाता है तो उसे बाहर निकाल दिया जाता है| बचे हुए उम्मीदवारों को अगले चरण के प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता है। अगले चरण में प्रशिक्षुओं को ज़ोन में बांटा जाता है जिनमें में 4 जिले प्रत्येक में होते हैं। ज़ोनल स्तर पर चुने गए उम्मीदवारों को फिर राज्य स्तरीय कैम्प में भेजा जाता है जहाँ पर कुश्ती, कालरिपायट्टू इत्यादि युद्ध कलाओं में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। इस स्तर पर विरोधी पर घातक रूप से हमला करने के लिए धारदार हथियारों के इस्तेमाल का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। छाती, पेट एवं किडनी को हानि पहुँचाने पर विशेष जोर दिया जाता है। विरोधियों की छाती और पेट पर नंगे हाथों से हमला करने के लिए विधिवत प्रशिक्षण दिया जाता है| जो रंगरूट अपना शारीरिक प्रशिक्षण सफलतापूर्वक समाप्त कर लेते हैं उन्हें दो गुप्त विभागों में बाँटा जाता है जिनमें एक सर्विस विभाग होता है जो की पी. एफ.आई के वरिष्ठ नेताओं की सुरक्षा के लिए होता है और दूसरा रिलीफ विभाग जो की लक्ष्य बनाकर विरोधियों पर हमला करने के लिए भेजा जाता है।
पी. एफ.आई द्वारा अपने चयनित रंगरूटों को दिया गया प्रशिक्षण इसलिए महत्व रखता है कि राज्य स्तरीय प्रतिभागियों को कभी पकड़े जाने की स्थिति में अपनी पहचान गुप्त रखने का भी अभ्यास करवाया जाता है| उजागर होने से बचने के लिए ऑपरेशन की योजना बनाने से लेकर उसके निष्पादन तक का कोई भी लिखित ब्यौरा नहीं रखा जाता है। यह पी.एफ.आई की कार्यप्रणाली और भारत की आंतरिक सुरक्षा की जटिलताओं पर बहुत से सवाल खड़े करता है।
इस प्रकार के अच्छे प्रशिक्षित कैडर से लैस पीएफआई, भारत की कानून व्यवस्था को तोड़ने और प्रशासनिक ढाँचे को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। कर्नाटक के डी.जी हल्ली पुलिस स्टेशन पर हिंसा का प्रकरण हो या केरल में आर.एस.एस कार्यकर्ता प संजीत की हत्या हो, गौरतलब है कि पी. एफ.आई के बढ़ते हुए खतरे के कारण इस पर तुरंत ही कार्यवाई की आवयकता थी जिसपर सरकार ने उचित कदम उठाते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया है|